जीवनोपयोगी शिक्षा के विभिन्न आयामों को आधार लेकर सम्पूर्णता की ओर अग्रसर करने हेतु संस्कृति एवं सभ्यता का परिचय ही नहीं अपितु रसास्वादन कराना ही विद्यालयीन गतिविधियों का प्रमुख उद्देश्य है।
छात्रा कभी एक बेटी, कभी एक लड़की व कभी एक नारी के त्रिरूप में पिता का, पति का अथवा परमात्मा का अर्थात् तीनों कुलों का वर्धन करती है। जो परिवार जनों को सुशोभित करने से पूर्व स्वयं को शोभित करती है और आगे चलकर गृहशोभा बनती है। छात्राओं के इसी व्यक्तित्व का निखार एवं सर्वांगीण विकास करने के लिए प्रतिभास्थली परिवार की प्रतिभाओं द्वारा भिन्न-भिन्न प्रायोगिक क्रियाकलापों एवं गतिविधियों जैसे हस्तशिल्प, हथकरघा, खेलकूद, योग, नृत्य , संगीत , पाक कला, प्रकृति-प्रेम, वार्षिक महोत्सव, शैक्षणिक भ्रमण व यात्राएँ आदि से ज्ञानानुभूति व अनुभव प्रदान किए जाते हैं, जिससे ये छात्राएँ अपने परिवार के साथ-साथ समाज को भी संस्कारों से अलंकृत कर सकें।