जिन दर्शन, निज अर्पण हो सम्यग्दर्शन
संस्कारों से स्वपर कल्याण, जीवन का निर्माण
विद्या ज्ञान से भर दो, माँ सरस्वती वर दो
स्नेह और एकता के साथ मनोहर छात्रावास
ज्ञान की धारा, अभ्यास के द्वारा
स्वस्थ तन-मन स्वादिष्ट भोजन
स्वस्थ तन-मन, विकास की ओर
अपना बाज़ार है हमारा, सामान मिले जहाँ सारा