“हित का सृजन अहित का विसर्जन यही शिक्षा का लक्षण है।”
स्वस्थ शिक्षा के द्वारा ही व्यक्ति में सही व गलत के अंतर को भली-भांति समझकर, स्व-पर के हित व अहित का विवेक जागृत होता है। इसी लक्षण को ध्यान में रखकर प्रतिभास्थली प्रणेता आचार्य गुरुवर श्री विद्यासागर जी महाराज के श्री मुख से स्वस्थ शिक्षा के उद्देश्य हेतु सात स्वस्थ आधार स्तम्भ प्रदान किए गए, जिनको आत्मसात कर प्रतिभास्थली की छात्राएँ न केवल स्व का अपितु सम्पूर्ण समाज, राष्ट्र व देश का विकास कर एक स्वस्थ स्वराष्ट्र का निर्माण करेंगी।
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स्वस्थ तन:
शिक्षा सच्चा श्रम है ऐसा, सहनशीलता गुण भर देता,
स्वस्थ रहे तन उर्जावान, थके नहीं,हो हर पल निर्माण। -
स्वस्थ वचन:
जब मातृभाषा शिक्षा आधार हो, और शब्दकोश का लगा भंडार हो,
स्पष्ट-शुद्ध हो उच्चारण, साहित्य रचे यही स्वस्थ वचन। -
स्वस्थ मन:
शिक्षा ही विश्वास बढ़ाए, सकारात्मक सोच बढ़ाए,
स्वस्थ रहे जब शिक्षित मन, अनुशासनमय हो जीवन। -
स्वस्थ धन:
न्यायनीति, संतोष, सत्य से अर्जन होगा स्वस्थ जो धन का,
अर्थ नहीं परमार्थकारी वो यही लक्ष्य हो शिक्षा का। -
स्वस्थ वन:
प्रकृति सबको जीवन देती अगर हरी-भरी वो रहती,
हरियाली अपनालो सब, वन को स्वस्थ बना लो अब। -
स्वस्थ वतन:
नारा हो वसुदैव कुटुम्बकम बन जाए वह स्वस्थ वतन, अखंड एक अपना यह राष्ट्र हो, धर्म सहिष्णुता शिक्षा का सार हो।
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स्वस्थ चेतन:
शिक्षा का एक मात्र आधार सर्वांगीण हो छात्रा विकास, दृष्टि निर्मल, आचरण भी उज्ज्वल, सम्यक ज्ञान हो स्वस्थ हो चेतन।